जगदलपुर/बस्तर न्यूज
सिख धर्म के आठवें गुरू (पातशाह) श्री गुरु हरकिशन साहिब जी का प्रकाश पर्व आज 29 जुलाई सोमवार को शहर के शान्ति नगर स्थित गुरुद्वारा में बड़े धूमधाम से मनाया गया। सुबह से सहज पाठ शुरू किया गया । जिस की समाप्ति 12:00 बजे हुआ । तथा दोपहर 1:00 तक शब्द कीर्तन अरदास और गुरू का लंगर हुआ । जिसमें सिख समुदाय के बच्चे, महिला और पुरुषों हिस्सा लिया।
गुरू हरिकिशन साहिब जी का जीवन परिचय
गुरू हर किशन साहिब जी का जन्म 17 जुलाई 1656 को कीरतपुर साहिब में हुआ। वे गुरू हर राय साहिब जी एवं माता किशन कौर के दूसरे पुत्र थे। 5 वर्ष की अल्प आयु में गुरू हर किशन साहिब जी को गुरुपद प्रदान किया गया था। गुरु हर राय जी ने 1661 में गुरु हरकिशन जी को अष्ठम् गुरू के रूप में स्थापित किया।
बहुत ही कम समय में गुरू हर किशन साहिब जी ने सामान्य जनता के साथ अपने मित्रतापूर्ण व्यवहार से लोगों से लोकप्रियता हासिल की। इसी दौरान दिल्ली में हैजा और छोटी माता जैसी बीमारियों का प्रकोप महामारी लेकर आया। मुगल राज जनता के प्रति असंवेदनशील थी। जात पात एवं ऊंच नीच को दरकिनार करते हुए गुरू साहिब ने सभी भारतीय जनों की सेवा का अभियान चलाया। खासकर दिल्ली में रहने वाले मुस्लिम उनकी इस मानवता की सेवा से बहुत प्रभावित हुए एवं वो उन्हें बाला पीर कहकर पुकारने लगे।दिन रात महामारी से ग्रस्त लोगों की सेवा करते करते गुरू साहिब अपने आप भी तेज ज्वर से पीड़ित हो गये। छोटी माता के अचानक प्रकोप ने उन्हें कई दिनों तक बिस्तर से बांध दिया। जब उनकी हालत कुछ ज्यादा ही गंभीर हो गयी तो उन्होने अपनी माता को अपने पास बुलाया और कहा कि उनका अन्त अब निकट है। जब उन्हें अपने उत्तराधिकारी को नाम लेने के लिए कहा, तो उन्हें केवल बाबा बकाला’ का नाम लिया। यह शब्द केवल भविष्य गुरू, गुरू तेग बहादुर साहिब, जो कि पंजाब में ब्यास नदी के किनारे स्थित बकाला गांव में रह रहे थे, के लिए प्रयोग हुआ था।
अपने अन्त समय में गुरू साहिब सभी लोगों को निर्देश दिया कि कोई भी उनकी मृत्यू पर रोएगा नहीं। बल्कि गुरू बाणी में लिखे शब्दों को गायेंगे। इस प्रकार बाला पीर 9 अप्रैल 1664 को धीरे से वाहेगुरू शबद् का उच्चारण करते हुए ज्योति जोत में समा गये।