जगदलपुर

सिख समाज के लोगों ने कीर्तन करते हुए पंच प्यारे की अगुवाई में निकाली शोभायात्रा

जगदलपुर/बस्तर न्यूज

सिक्ख धर्म के प्रवर्तक प्रथम गुरु गुरुनानक देव जी के जन्मोत्सव पर आज शाम शहर में भव्य शोभायात्रा निकाली गई। पंच प्यारे नगर कीर्तन की अगुवाई कर रहे थे। नगर कीर्तन में सिख समाज की महिलाएं सबद कीर्तन का गायन करते हुए जुलूस में चल रहे थे। जिस मार्ग से पंच प्यारे चल रहें थे, उस मार्ग पर सामने झाडू लगाकर साफ-सफाई करने के साथ पानी का छिड़काव कर सड़क पर फूल बिछा रहें थे। शहर में जगह-जगह शोभायात्रा का आत्मीय स्वागत किया गया।

गुरुनानक देव जी जयंती के उपलक्ष्य में आज शाम करीब पांच बजे संजय बाजार स्तिथ पुराने गुरुद्वारा से झांकी व शोभायात्रा निकाली गई। शोभायात्रा शहर के प्लेस रोड से निकलकर मेन रोड, महावीर चौक, श्री राम चौक, चांदनी चौक मार्ग से होते हुए अग्रसेन चौक पहुंची। यहां से गुरु गोविंद सिंग चौक होते हुए शान्ति नगर गुरुद्वारा पहुंची। जहां शोभायात्रा का समापन हुआ। इस दौरान सिक्ख धर्म की परंपरानुरूप पंच प्यारे शोभायात्रा की अगुवाई कर रहे थे। पंच प्यारों के पीछे सिख समाज के लोग गुरुनानक देव जी के उपदेश का कीर्तन गा रहे थे। प्रकाशोत्सव के उपलक्ष्य में निकाली गई शोभायात्रा का जगह-जगह स्वागत किया गया। शान्ति नगर गुरुद्वारा में अरदास उपरांत गुरु का लंगर ग्रहण किया

गुरुद्वारा की गई साज सज्जा किया गया

गुरुनानक देव के जन्मोत्सव पर्व पर गुरूद्वारा को रंगीन विद्युत झालरों से सजाया गया है। इसके अलावा सिख समुदाय द्वारा प्रकाश पर्व को लेकर प्रभात फेरी निकाली गई। प्रभातफेरी के माध्यम से गुरु के उपदेश को जन-जन तक पहुंचाया जाता है।

कार्तिक पूर्णिमा पर लगेगा लंगर

गुरुनानक देव जी की 555वी जयंती पर यहां कार्तिक पूर्णिमा के दिन 15 नवंबर को शान्ति नगर गुरुद्वारा में लंगर लगेगा। गुरूनानक जयंती पर यहां सबद-कीर्तन का आयोजन किया गया है। लंगर में सिख समुदाय के अलावा अन्य धर्म के लोगों के शामिल होने की संभावना है। प्रकाशोत्सव पर्व को लेकर सिख समुदाय में उत्साह का माहौल है।

सिक्खों की युद्ध कला गतका का प्रदर्शन

शोभायात्रा के दौरान सिखों की शौर्य और साहस का पारंपरिक युद्धक कला गतका का प्रदर्शन किया गया। सिक्खों की युद्ध कला का अद्भुत प्रदर्शन समाज के युवाओं ने किया। पारंपरिक युद्ध कला गतका का हैरतअंगेज प्रदर्शन, जहां तलवारों की चमक और फरसों की खड़खड़ाहट ने सभी का ध्यान खींचा। सिक्खों के धार्मिक उत्सवों में इस कला का शस्त्र संचालन प्रदर्शन किया जाता है।

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