जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध ऐतिहासिक बस्तर दशहरा पर्व का एक अत्यंत भावुक और गरिमामय अध्याय मंगलवार को समाप्त हुआ। लगभग 75 दिनों तक चलने वाले इस अद्वितीय और अद्भुत सांस्कृतिक महापर्व की अंतिम रस्म मावली विदाई के साथ इसका समापन हो गया। हजारों की संख्या में जुटे भक्तों द्वारा अपार श्रद्धा के बीच आराध्य देवी मावली माता की डोली और छत्र को ससम्मान विदा किया गया। परंपरा के निर्वहन में माता की डोली को जगदलपुर के दंतेश्वरी मंदिर से गाजे-बाजे और भव्य शोभायात्रा के साथ साथ जिया डेरा तक ले जाया गया।
गार्ड ऑफ ऑनर के साथ हुई ’माई जी’ की विदाई
मां दंतेश्वरी मंदिर के समीप निर्मित आकर्षक मंच पर माई जी की डोली को रखा गया, जिसे श्रद्धालुओं ने दर्शन किया और बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव द्वारा परंपरा के अनुसार माई जी की आरती की गई। पुलिस जवानों द्वारा हर्ष फायर कर सलामी दिए जाने के बाद कमलचंद्र भंजदेव ने माई जी की डोली को अपने कंधों पर उठाकर इस प्राचीन परंपरा का निर्वहन किया। भक्तों ने पूरे रास्ते फूलों की वर्षा कर और जयकारे लगाकर अपनी माई जी को भावभीनी विदाई दी। डोली विदाई की यह रस्म बस्तर दशहरा पर्व की समाप्ति का प्रतीक है। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि 600 वर्ष से अधिक पुरानी बस्तर की समृद्ध आदिवासी संस्कृति और परंपराओं का जीवंत प्रदर्शन भी है। इस विदाई के साथ भक्तों ने अगले वर्ष फिर से उत्सव की शुरुआत की उम्मीद लिए देवी से क्षेत्र की सुख-समृद्धि का आशीर्वाद माँगा।
श्रद्धा और सम्मान से सजी विदाई यात्रा
शोभायात्रा के दौरान पारंपरिक वाद्य यंत्रों की गूँज थी, वहीं माता मावली की डोली के सामने उनके साज-श्रृंगार के सामान कांवरिया कावड़ में लेकर चल रहे थे। पारंपरिक वेशभूषा में सिर पर कलश धारण किए महिलाएं, इस विदाई यात्रा की शोभा बढ़ा रही थीं। पूरे मार्ग पर श्रद्धालुओं ने जगह-जगह माई जी का स्वागत किया, पूजा-अर्चना की और भावुकता के साथ उन्हें विदाई दी। जिया डेरा से माता मावली की डोली एवं छत्र को एक सुसज्जित वाहन से दंतेवाड़ा के लिए रवाना किया गया।