जगदलपुर

बस्तर दशहरा की ‘बाहर रैनी’ रस्म पूरी, राजा ने माड़िया समुदाय के साथ खाई नवाखानी

जगदलपुर। विश्व प्रसिद्ध बस्तर दशहरा पर्व में सोमवार को रथ परिक्रमा की अंतिम और सबसे अनूठी रस्म ‘बाहर रैनी’ निभाई गई। इस दौरान राज परिवार के सदस्य ने सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन करते हुए माड़िया आदिवासी समुदाय के लोगों के साथ ‘नवाखानी’ (नए चावल की खीर) खाई। इस अवसर पर सांसद एवं बस्तर दशहरा समिति के अध्यक्ष महेश कश्यप, महापौैर सहित जनप्रतिनिधिगण भी शामिल रहे।

नवाखानी के बाद विशालकाय विजय रथ की वापसी हुई। यह रस्म बस्तर की अनूठी सामाजिक समरसता और आदिवासी संस्कृति की झलक पेश करती है।

​परंपरा: रथ चोरी और राजा का मान-मनौव्वल
​दरअसल, विजयादशमी की रात (भीतर रैनी) को माड़िया समुदाय के ग्रामीणों ने परंपरानुसार आठ पहियों वाले विशाल रथ को चुराकर नगर के समीप कुम्हड़ाकोट जंगल में छिपा दिया था। यह रस्म उस ऐतिहासिक घटना को याद करती है जब एक बार ग्रामीणों ने राजा से असंतुष्ट होकर रथ चुरा लिया था। ​शुक्रवार दोपहर राज परिवार के सदस्य, राजगुरू और मांझी-मुखिया पूरे लाव-लश्कर और गाजे-बाजे के साथ रथ को वापस लाने के लिए कुम्हड़ाकोट पहुँचे। यहाँ राजा द्वारा ग्रामीणों से रथ वापस करने के लिए मान-मनौव्वल किया गया।

नवाखानी से हुआ सद्भाव
​माड़िया समुदाय ने रथ लौटाने के लिए शर्त रखी कि राजा उनके साथ नवाखानी खाएँगे। राज परिवार ने सहर्ष इस शर्त को स्वीकार किया। नए चावल से बने इस प्रसाद को सभी ने एक साथ ग्रहण किया, जो राज और आदिवासी समुदाय के बीच गहरे पारंपरिक संबंध और सद्भाव का प्रतीक है। ​नवाखानी की रस्म पूरी होने के बाद माँ दंतेश्वरी का छत्र विधि-विधान के साथ रथ पर विराजित किया गया। माड़िया समुदाय के लोगों ने भारी उत्साह के बीच विजय रथ को जंगल से वापस खींचकर दंतेश्वरी मंदिर के सिंहद्वार तक पहुँचाया। बाहर रैनी रस्म के समापन के साथ ही बस्तर दशहरा की रथ परिक्रमा पूरी हो गई। 75 दिनों तक चलने वाला यह अनोखा पर्व अब आगामी रस्मों-काछन जात्रा और कुटुम्ब जात्रा- के साथ अपने अंतिम चरण की ओर बढ़ रहा है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *