जगदलपुर/बस्तर न्यूज
सिख धर्मावलंबियों ने खालसा पंथ की स्थापना का पर्व बैसाखी स्थानीय शांति नगर स्थित गुरुद्वारा में उत्साह पूर्वक मनाया गया। बैसाखी पर्व पर गुरुद्वारे में विशेष दीवान सजाए गए। दिल्ली से पहुंचे कीर्तन जत्थे ने वाहे गुरु, वाहे गुरु शबद-कीर्तन से संगत को निहाल कर दिया। सबद-कीर्तन के बाद गुरु का लंगर बरताया गया। बड़ी संख्या में सिख धर्मावलंबियों के साथ अन्य श्रद्धालु पहुंच कर मत्था टेका और लंगर में प्रसाद ग्रहण किया।
सिख समुदाय द्वारा हर साल बैसाखी का त्योहार पूरे जोश और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। इस पर्व को खुशहाली और समृद्धि का पर्व माना जाता है। बैसाखी का त्योहार 13 अप्रैल को मनाया गया। सिख धर्मावलंबियों ने खालसा पंथ की स्थापना का पर्व बैसाखी उत्साह पूर्वक मनाया। पर्व की शुरुआत 11 अप्रैल को अखंड पाठ साहिब के साथ किया गया। 12 अप्रैल को कीर्तन दरबार के बाद गुरु का लंगर का आयोजन किया गया। रविवार 14 अप्रैल को भी दिल्ली से पहुंचे कीर्तन जत्था के भाई जसप्रीत सिंघ, सोनुविर ज़ी दिल्ली वाले ने सबद कीर्तन से गुरद्वारे में गुरू के श्रद्धालुओं को भाव विभोर करेंगे।
क्यों मनाया जाता है बैसाखी का पर्व?
गुरु सिंघ सभा के अध्यक्ष सरदार स्वर्ण सिंह ने बताया कि मानवता के अलावा खालसा पंथ ने सामाजिक बुराइयों को समाप्त करने के लिए काम किया। 13 अप्रैल,1699 को श्री केसगढ़ साहिब आनंदपुर में दसवें गुरु गोविंद सिंह जी ने खालसा पंथ की स्थापना कर अत्याचार को समाप्त किया। इस दिन को तब नए साल की तरह माना गया, इसलिए 13 अप्रैल को बैसाखी का पर्व मनाया जाने लगा। इसलिए सिख समुदाय में बैसाखी का त्योहार खालसा पंथ के स्थापना दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। बैसाखी के दिन से ही पंजाबी नए साल की शुरुआत भी होती है।
बड़ी संख्या में श्रद्धालुओ ने गुरु का प्रसाद ग्रहण किया
बैसाखी पर्व पर सिख समाज के लोग सपरिवार शामिल होकर एक दूसरे के साथ पर्व की खुशियां बांटी। समाज की ओर से दोपहर होने वाले आम लंगर में अन्य समाज के लोगों के साथ लगभग 1 हजार लोग शामिल होकर प्रसाद ग्रहण किया। सुबह से ही गुरुद्वारा में गुरुवाणी, शबद कीर्तन की गूंज शुरू हो गई थी ।