जगदलपुर/बस्तर न्यूज
मां दंतेश्वरी दरबार में चल रहे श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के चौथे दिन इला और उसके पुरुष रूप सुद्दुम की कथा बताते हुए महामाया धाम पाटन से पहुंचे आचार्य पंडित कृष्ण कुमार तिवारी कहते हैं कि हमारी इच्छाएं ही प्रतिफल का कारक है। जिस भावना से हम फल की कामना करते हैं और वह दृढ़ हो तो फल भी मनोवांछित होता है। भौतिक वस्तुओं को प्राप्त कर हम अपना परलोक नहीं सुधार सकते, अगर परलोक सुधारना है तो श्रीमद् देवी भागवत महापुराण का श्रवण करें, चूंकि देवता भी करते हैं नवरात्र में देवी की आराधना।
शहर मध्य स्थापित मां दंतेश्वरी मंदिर का निर्माण वर्ष 1890 में किया गया था। बीते 134 वर्षों में यहां पहली बार श्रीमद् देवी भागवत महापुराण जिला पत्रकार संघ बस्तर द्वारा आयोजित है। इसके साथ ही देवी के नौ रूपों की पालकी निकालने की परंपरा भी यहां शुरू की गई है।
परलोक सुधार लें
इस अनुष्ठान के दौरान ही सोमवार को नवरात्रि महात्म, राजा जनमेजय, इला – सुद्दूम, महिषासुर वध, निशुंभ कथा और देवी कालिका उत्पत्ति का वर्णन आया। श्रोताओं को संबोधित करते हुए आचार्य कृष्ण कुमार तिवारी ने कहा कि जब तीर्थ यात्रा पर जाते हैं तो तैयारी महीना दिन पहले शुरू कर देते हैं। अपने रिश्तेदारों और मित्रों को साथ चलने कहते हैं, किंतु अपनी अंतिम यात्रा कष्टप्रद न हो और परलोक बेहतर हो, इसकी तैयारी नहीं कर रहे हैं, इसलिए संतजन परलोक सुधारने की बात कहते आ रहे हैं और परलोक सुधारने का सुलभ मार्ग देवी भागवत महापुराण का श्रवण है। इसके श्रवण से सांसारिक भोग तो मिलते हैं, जीव को मोक्ष की भी प्राप्ति होती है।
निकाली गई मां कुष्मांडा की पालकी
चौथे दिन की कथा के समापन उपरांत देवी के नौ रूपों में चौथे कर्म पर स्थापित मां कुष्मांडा की पालकी निकाल गई। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए। यह पालकी सिरहासार चौक से गोल बाजार, मिताली चौक, पैलेस रोड होते हुए दंतेश्वरी मंदिर पहुंची। तत्पश्चात माता की आरती उतार प्रसाद वितरण किया गया। दंतेश्वरी मंदिर में चल रहे श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के लिए पखनागुड़ा निवासी मूर्तिकार जीवराखन चक्रधारी ने मां दुर्गा की प्रतिमा भेंट की है। एक तरफ जहां मां दुर्गा प्रतिमा की नित्य पूजा अर्चना हो रही है वहीं दूसरी तरफ प्रतिदिन संध्या काल में मांई जी की पालकी निकाली जा रही है।
19 मार्च के कार्यक्रम
श्रीमद् देवी भागवत महापुराण के तहत मंगलवार 19 मार्च को सूर्यवंशी राजाओं की कथा, सुकन्या कथा, राजा हरिश्चंद्र की कथा और मां शाकंभरी की कथा का वर्णन आएगा। इसके तत्काल बाद स्कंधमाता की पालकी निकाली जाएगी।