जगदलपुर। (बस्तर न्यूज) बस्तर में गणेश चतुर्थी पर 31 अगस्त को विधिवत पूजा अर्चना कर स्थापित करने के बाद घरों में रखें गए, बप्पा को अंनत चतुर्वेदी के दिन विदाई दी गई। लेकिन सार्वजनिक गणेश पंडालों में स्थापित प्रतिमाओं को अंनत चतुर्वेदी के बाद भी पिछले एक सप्ताह से विसर्जन किया जा रहा है। पितृपक्ष पर गणेश विसर्जन को लेकर हिन्दुओं धर्मावलंबियों में नाराजगी है, वहीं रोज-रोज धुमाल की धुन पर नाचते-गाते सड़क जाम को लेकर आम जनता भी परेशान हैं ।
नगर के पंडित वीरेन्द्र कुमार मिश्रा ने बताया कि गणेश स्थापना के 11वें दिन अनंत चतुर्दशी को प्रतिमाओं का विसर्जन करना शास्त्र सम्मत है, क्योंकि पूर्णिमा से पितृ पक्ष शुरू होता है। पितृ पक्ष के दौरान घर-घर में मृत आत्माओं की शांति पूजा की जाती है, इसलिए पितृ पक्ष में भगवान की प्रतिमा का विसर्जन नहीं करना चाहिए। लेकिन शहर के अंदर पिछले एक सप्ताह से पितृपक्ष पर विसर्जन का दौर चल रहा है। गाजे बाजे के साथ झांकी के चलते सड़क जाम होने से आम जनता परेशान हैं। रोज-रोज डीजे और धुमाल की शौर के चलते भी लोग त्रस्त हो गए हैं।
देर रात तक विसर्जन
शहर के अंदर पिछले एक सप्ताह से विसर्जन का दौर चल रहा है। सार्वजनिक गणेश पंडालों में स्थापित भगवान गणेश की प्रतिमाओं को देर रात तक विसर्जन करने ले जा रहे हैं। रात को नदी में विसर्जन करने से दुर्घटना की आशंका बनी रहती है। वहीं दिन भर ड्यूटी करने के बाद देर रात तक विसर्जन के दौरान तैनात पुलिस जवानों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
क्यों किया जाता है गणेश विसर्जन
गणेश विसर्जन के पीछे पौराणिक कथा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार महर्षि वेदव्यास के आह्नान पर गणपति जी ने महाभारत की लेखन कार्य प्रारम्भ किया। दिन-रात लगातार लेखन कार्य से गणपति जी के शरीर का तापमान बढ़े नहीं, इसलिए वेदव्यास ने उनके शरीर पर मिट्टी का लेप किया। मिट्टी का लेप सूखने पर गणेश जी के शरीर में अकड़न आ गई । लेखन कार्य अनंत चतुर्दशी को संपन्न हुआ। वेद व्यास ने गणेश जी को पानी में डाल दिया। इस लिए अनंत चतुर्दशी को विसर्जित कर दिया जाता है ।