जगदलपुर। (बस्तर न्यूज) डॉक्टरों को ऐसे ही भगवान नहीं कहा जाता है। हॉर्ट-रेट एवं रेस्पिरेट्री-रेट नहीं दिखाने वाले नवजात को डॉक्टर एवं अस्पताल स्टॉफ ने उपचार के बाद नया जीवन दिया है। मेडिकल कॉलेज डिमरापाल में लगभग 32 सप्ताह का गर्भ को इमरजेन्सी सीजेरियन ऑपरेशन कर बच्चे को बाहर निकाला गया। नवजात शिशु की स्थिति काफी गंभीर गंभीर था, लेकिन डाॅक्टर देवदूत बन कर नवजात की जान बचाई गई। मेडिकल कॉलेज डिमरापाल में 19 अगस्त को बस्तर ब्लाक के मोहल्लई निवासी सुनीता को भर्ती कराया गया था। लगभग 8 माह का शिशु गर्भाशय के बाहर पल रहा था। गर्भवती महिला की स्थिति गंभीर को देखते हुए डाॅक्टरो ने इमरजेन्सी सीजेरियन ऑपरेशन कर बच्चे को बाहर निकाला । प्रसव के बाद नवजात की सांस की गति और हृदय की धड़कन नहीं चल रही थी, लगभग मृतप्राय अवस्था में नवजात को शिशु वार्ड में भर्ती किया ।
वरिष्ठ शिशु रोग विशेषज्ञ डाॅ अनुरूप साहू की देखरेख में तुरंत वेंटीलेटर सुनिश्चित कर ईलाज शुरू किया गया। इसके बाद नवजात के शरीर में हरकत होने पर उसे तत्काल जीवनरक्षक इंजेक्शन दिया गया। वेंटीलेटर में 12 दिनों तक कृत्रिम श्वांस देकर रखा गया। इसके बाद ऑक्सीजन थेरेपी कर नवजात शिशु की जान बचाई गई। अब पाइप के जरिए दूध पिलाई जा रही है। शिशु वार्ड के डाॅ प्रधान, डाॅ जायसवाल, डाॅ बबिता, डाॅ पलराम, डाॅ स्काट, डाॅ बघेल और डाॅ बलदेव ने उपचार में सहयोग दिया ।
बच्चेदानी के बजाय पेट में पल रहा था शिशु
मोहलई निवासी गर्भवती महिला सुनीता की बच्चेदानी के बजाय शिशु पेट में पल रहा था। इससे जच्चा-बच्चा दोनों की जान को खतरा था। महिला के परिवारजन उसे मेडिकल कॉलेज डिमरापाल अस्पताल लाए । यहां डाॅक्टरो की टीम ने सिजेरियन ऑपरेशन कर बच्चे की डिलिवरी करवाई और जच्चा-बच्चा को खतरों से बचा लिया । गर्भवती सुनीता को अचानक पेट में दर्द होने पर मेकाज लाया गया। यहां अल्ट्रासाउंड में पता चला कि शिशु उसकी बच्चेदानी के बजाय पेट में पल रहा है। डॉक्टरों के मुताबिक, इस दिक्कत को सेकेंडरी एब्डॉमिनल प्रेग्नेंसी कहते हैं। दस हजार मामलों में ऐसा एक ही केस होता है और अस्पताल में ऐसा केस पहली बार आया था ।